कुदरत ने दी हुयी सज़ा -बाढ़

कुदरत से किया खिलवाड़ आज जानपर बन आया है। बाढ़ की हालत ने कई जिन्दगीया हमसे छीन ली है। पचास फीट ऊँचे पानी में क्या जीवन बच पायेगा ? इन सवालो पर गहरायी से सोचना होगा। हम मानव है ,कुदरत को काबू में करने चले,एक झटके में हम अपनही नजरो में गिरनेवाले है। जैसेही बाढ़ कम होगी,हमे जिंदगी ढूंढनी होगी। जो एकदम अकेली होगी,अपने आप को खोजती होगी  


जो मुठी में था वही बचा है…. 
जो साथ रहा वही बचा है  ….
इन हालातो के लिए मैं ही जिम्मेदार हूँ 
ये कुदरत तूने तो मुफ्त दी थी जिंदगी
मैं ही वह इंसान हूँ जो अपनी ही धून में चला जा रहा हूँ 



 ढूँढू कहा तुम्हे जिंदगी …. 
मेरे तो जीने का बहानाही नहीं बचा है  …..
तुम्हें समझ न पाया ,
तुम्हारे साथ खिलवाड़ करता रहा हूँ 
आखरी दमतक अपने आप को बचाता रहा,
सबकुछ मेरा अपना यही मानता रहा 
तूने एहेसास दिलाया अपने होने का 


,तो जिन्दा लाश बना गया फिर भी नहीं मान रहा हूँ
मुझे उसी को जीने का सलीखा न आया
मुझे बार बार समझाती रही हो 
तुम मुझे जिंदगी जीने का मौका देती रही हो तुम मुझे
तेरी मौजूदगी को देख कुछ डर सा गया हूँ,
इस मंजर को देखा कर कुछ पल के लिए रुक रहा हु 
मै जिंदगी से दूर जा रहा हूँ मै कुदरत से खेल रहा हूँ ….. मै कुदरत से खेल रहा हूँ ….. 


By Admin

2 thoughts on “कुदरत ने दी हुयी सज़ा -बाढ़”
  1. Hi…it's not virtual reality…but it's Real truth of our negligence about nature…nobody cares…what's going on…but I think it's out of control…non repairable damage by us…new generation is tottaly careless ..about the nature and many other things…

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