आओ जिम्मेदारी को समझे।


महाराष्ट्र और कर्नाटक के हालत इन दिनों कुछ ठीक नहीं। बाढ़ से स्थिति गंभीर बनी हुयी है। सांगली लगातार  आठवे दिन पानी में तैर रही है। कोल्हापुर सप्ताह तक पानी में डूबा रहा। एक  तरफ यह नजारा है ,पानी डरा रहा है। ऐसे में महाराष्ट्र के करीब सत्ताईस जिले पानी के लिए तरस रहे है। इसी सांगली कोल्हापुर से सटे जिलोमे अभी बुआई नहीं हो पाई है। तो करीब दस जिले ऐसे है जिनमे आज पिने के पानी के लिए लोगो को जद्दोजहद करनी पड़ रही है।

इस विपदा और असंतुलन की परिस्थिति के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है ? इस सवाल का जबाब ढूंढते है तो कई और सवाल सामने आ खड़े होते है। और सभी के जबाबमे एक ही समानता है। हम सभी जिम्मेदार है। ठीकरा फोडनाही है तो हम सरकर निति और कार्यपद्धति पर फोड़ सकते है। और उन्हें जबाबदेही होना चाहिए ,पर हमारे लोकतंत्र में यह प्रावधान ही नहीं के सरकारी तंत्र की जबाबदेही सुनिश्चित कर सके। और राज करनेवाले नेता हर विपदा और ख़ुशी के मौके पर राजनीती  के रंग में रंगे होते है। तभी तो बढ़ पीड़ितों से सवेदना जताकर हस्ते खेलते मुस्कुराते सेल्फ़िया खींचते अपने आप को सार्वजनिक करते है। यही अनुभव कोल्हापुर सांगली की बाढ़ में जनताने देखे है। 

इस हालत में मेरे दिमाग में उठे सवालो के जबाब ढूंढ रहा हूँ ,,,,,


१  इस बाढ़ के लिए बारिश के मामले में आय एम् डी से मिली सूचना पर भरोसा नहीं था ?

२ समय रहते महाराष्ट्र और कर्नाटक के मुख्यसचिव पानी जमा करने और छोड़ने में निर्णय नहीं कर पाए ? 
३ दोनों राज्यों की सरकार के नेता इस बात को लेकर राजनीती का बहाना बनाना चाहते थे ?
४ सरकारी तंत्र के सूचना और सावधानी के उपायों को नागरिकोने हलके में लिया ? अगर लोग इस का पालन कर लेते तो शायद नुकसान बहुत कम होता। 
५ कर्नाटक सरकार अलमाटी डेम की ऊंचाई बढ़ा रही थी उसी समय उसे केंद्र सरकारने हस्तक्षेप कर के क्यू नहीं रोका ? क्यू  के इस के परिणामो को समझने की औकात प्रशासन के ज़िम्मेदार अधिकारियो की नहीं है,तो उन्हें इस पद पर बने रहने का कोई अधिकार नही है।  

अब सवाल सूखे से जूझ रहे महाराष्ट्र पर कुछ सवाल


१ क्या इस  पानी संकट से निजाद पाने के लिए महाराष्ट्र सरकारने नहर विकास को कार्यान्वित किया है ?

२ पहले ही गहरायी में पहुंचे जलस्तर को ऊपर उठाने  के लिए कोई प्रयास किया गया ? 
 इन दिनों जलयुक्त के माध्यमसे किया गया प्रयत्न परिपूर्ण करने के लिए और भी बहुत कुछ करना होगा। 
३ नदियों में बन रहे बाँध से पानी कहा और कैसे इस्तेमाल होता है ,इसका नियोजन या इस पर निगरानी की कोई निति बनायी है ?
४ नदियोंसे अवैध बालू खनन , मिटटी खनन पर  सरकारी तंत्र और सरकार गंभीर है ?
५ पानी के वितरण को लेकर राजनेता का हस्तक्षेप ना हो ,सभी के लिए कुदरती संसाधन का वितरण हो इसके लिए सख्त निति ,कायदे ,कानून का पालन होता है के नहीं इस की पड़ताल के लिए व्यवस्था है ? 

यह उपाय हो सकते है….. 


सबसे पहले तो सरकारी तंत्र को बातबात पर न्यायालयों में मामलों को लेजा कर अपनी जिम्मेदारी भागने के कार्यपद्धति को रोकना होगा। इस से न्यायपालिका सही और प्रामाणिक नागरी विवादों को जल्दी सुलझाने में गतिमान होगी।  

नहरों का विकास अत्यंत प्रमाणिकता और तत्परतासे करना। बोअरवेल को लेकर नियम तो बना पर कार्यवाही और निगरानी की व्यवस्था ही सरकार के पास नहीं है। ,नदियों में बाँध पर पाबन्दी। अवैध बालू खनन,बेहिसाब बिना सोचे समझे कहींपर भी हुवा खनन ,साथ ही बाढ़ रेखा ने हो रहे निर्माणों पर सख्त कार्यवाही की कोताही की वजह भी इस  नुकसान के लिए जिम्मेदार है।बालू खनन पर सख्त निति ,नियम का पालन हो । नागरिको को समय समय पर सरकार से मिलनेवाली सूचना का पालन करना और उसपर भरोसा करना हानि से बचा सकता है।  नदिया ,बाढ़ रेखा में निर्माण पर कानून सख्त और तुरंत कार्यवाही की रचना होनी चाहिए। 
सरकारी अधिकारी ,कर्मचारियों की जबाबदेही ,जिम्मेदारी सुनिश्चित करे। इसके लिए बने निति ,नियमो कठोरतासे पालन की निरपेक्ष,निष्पक्ष  व्यवस्था  बनाई जा सकती है। इस निति को आचरण में लाने के किये सख्त कानून और तुरंत सजा का प्रावधान होना।  
केवल सरकार ही नहीं ,कुछ निजी जिम्मेदारियों के चलते नागरिको के सूचनाओंका सम्मान और पालन की व्यवस्था निर्माण करनी होगी। ताकि आनेवाले समयमे ऐसी विपदा का सामना नहीं करना पड़े। 
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By Admin

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