आज़ादी ….
एक ऐसा लब्ज जिसने हमे बहोत कुछ दिया। परिणाम में बहोत कुछ बदला और जो नहीं बदला वह सरकारी तंत्र। जिसे बदलना थोड़ा कठिन काम है। क्यू के इनका अस्तित्व एक मील के पत्थर की तरह है। इस के पास से गुजरता है हर जनसामान्य से लेकर राजनेता तक के व्यक्तित्व। केवल इन्ही का अस्तित्व बरकार है इस हिंदुस्थानी लोकतंत्र में।
सरकारी तंत्र हमेशासे सिर्फ और सिर्फ स्वयम के बारे में सोचनेवाला सिस्टम है। जिसके बहकावे में आकर सरकार में शामिल सख्त से सख्त मंत्री भी जनसेवा भूल जाते है। उम्र के तिस साल इस सिस्टम को क़रीबसे देख रहे है। इनमे से किसी को अपने कर्तव्य में कसूर करनेके लिए किसी सरकारी अधिकारी या कर्मचारी को कड़ी सजा नहीं हुयी। सजा हुयी है ,जिसमे उनपर भ्रष्टाचार के आरोप लगे साबित हुए और सजा लगी। जब के इन में से किसी के लिए अपने कार्य की कोई नियमावली बनी नहीं है। इस कारन इनकी जबाबदेही आज तक तय नहीं हो सकी। और इसी कमी को सही तरहसे शक्ति बनाकर अपना उल्लू सीधा कर रहे है यह सरकारी बाबू।
आज़ादी ,का सही मतलब इस तंत्र ने समझा और उसका लाभ उठाने में कही कसर नहीं छोड़ी। कुछ लोग है ,जो देश और जनता के लिए सरकारी नौकरी करते है। पर उनकी संख्या बहोत ही कम है। साठ सालो बाद सरकार बदली तो जनता बड़ी अपेक्षा बनाये बैठी है। आम जनता सरकारसे आस लगाए बैठी है ,के इस सरकारी तंत्र के सम्पति का ब्यौरा जनता के जानकारी के लिए सार्वजानिक होगा। इन को जनता के प्रति पूरी ईमानदारीसे काम करने के लिए सख्त कदम उठाये जायेंगे। क्यू के आजाद हिन्दुस्थान में इनकी जबाबदेही तय करने की बात पर कभी चर्चा नहीं हुयी और जब भी हुयी उसका दायरा और परिणाम बहोत बड़ा और सार्वजनिक नहीं हो पाया।
इस के परिणाम स्वरुप आज देश का आम नागरिक,न्यायपालिका,आर्मी,पुलिस,आई ऐ एस ,आय पी एस के खिलाफ नहीं बोल सकता। क्यू के ये वो लोग है जिन्होंने आज़ादी का सही मतलब समझा है। और हम लोग इनके हाथ की कठपुतली बन बैठे है।
हम थोड़ा बहोत सरकार जाननेवाले आज जनता को कायदे कानून के नाम पर अप्रत्यक्ष पद्धतिसे डराने का काम करते है। और हमारे सामने कानून तोड़नेवालो के लिए इस तंत्र याने सरकारी और राजनैतिक महकमे में बैठे लोग रेड कारपेट बिछाते है। तब दुःख इस बात को लेकर होता है ,आजादी का यह मतलब हमें समझ क्यू नहीं आया।
।। वन्दे मातरम।।