नौकर बने मालिक तो उपरवालाही बचाये

आज दुनिया महामारी से जूझ रही है। हर शक्स जिसे अपने परिवार की सुरक्षा की सबको पड़ी है। हमारे देश की सरकार जनता के लिए बहुत कुछ करती है। ऐसा सभी राजनेता ,अफसरशाह ,सरकारी मुलाज़िम,(इन्हे हम विश्वस्त और नौकर कहते है तो इन्हे बुरा लगता है इसलिए यह शब्द ) को लगता है। सचाई यह है के यह सब दिखावा है। इन्हे जनता केलिए कुछ करना नहीं है।  तभी जनता को हर दप्तर सालो धक्के खाने पड़ते है।  अपने की छोटे से काम के लिए ,जब के वह काम उस देशवासीका अधिकार है।  दुर्भाग्य है हमारी शिक्षा ,समाज व्यवस्था हमें हमारे अधिकारों को जताने या उसे इस्तेमाल करने की इजाजत ही नहीं देती।

क्या है कहानी

आज मैं आपको एक ऐसे परिवार से मिलवा रहा हूँ ,जिसमे एक बुजुर्ग दम्पति है। जीनके एक लड़की तीन बेटे है।  इन बच्चे है। उनकी संख्या ग्यारह है। जिनमे तीन बेटियां है।  बाकि लडके है। सभी का अपना परिवार है।  बेटी का पति किसी नोकझोक की वजह से उसे छोड़कर किसी दूसरे शहर में चला गया है। एक लड़के की बीवी उसे छोड़कर अपना दूसरा घर बसा चुकि है।बचे दो बेटे अपने परिवार के साथ रहते है। यह पारिवारिक जानकारी है।

कहा से जुडी है

 यह परिवार महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के पुणताम्बा में निवास कर रहा है।  इनके आशियाने जमींन इनके लिए घर है।  आसमान इनके घर की छत है।  बारिश ,तपती धुप में बस अड्डा ,रेलवे प्लेटफॉर्म ,किसी टूटी बिल्डिंग का हिस्सा इनके लिए सहारे की जरुरत है। इस परिवार के पास दो राशन कार्ड है जिनमेसे एक मुखिया दम्पति का है।  दूसरा परिवार बिखरे बेटे का है।  बाकि भाइयो के पास ना ही जाती प्रमाणपत्र है और ना ही राशन कार्ड नाम की सरकारी पहचान। इन दो भाई और एक बहन के परिवार में कुल ग्यारह बच्चे है। इन सबको मिलाकर दो चार आधार कार्ड बने हुए है।

कैसे किया जाता है गुजारा

दिन निकलते ही परिवार के हर सदस्य अपनी तरफसे परिवार के लिए कुछ करने में जुट जाते है।पुरुष छोटे खिलोने ,गुब्बारे बेचने चल पड़ते है। बच्चे महिलाये चार घर जाकर रोटी का जुगाड़ कर लेती है। कुल मिलाकर केवल जिंदगी जीने का नाम है। फिर भी इनकी बच्चियाँ पढ़ रही है। इन्हे दो शिक्षा संस्थाओ ने शिक्षा के लिए गोद लेने की बात यह बोल रहे है।

क्या है इनकी माँग ?

पेड़भर छाव की जमीन जिसमे मकान बना सके। रोज रोज दर दर की ठोकर खाकर उक्ता गया है परिवार।क्या कभी किसी कलेक्टर ने राह चलते गाडी रोककर ऐसे परिवार का हाल या उसकी जरुरत की पूछताछ की है ? इस सवाल के जबाब हम सभी को ढूंढना होगा।

इससे उभरे सवालो के जबाब कौन दे ?

इस महामारी ने इनको मास्क कौन देगा ?इन्हे संक्रमण से कौन बचाएगा ? क्या एक परिवार में दो राशन कार्ड मुहैया करनेवाली प्रशासन को इसी परिवार के तीन और परिवार दिखाई नहीं दिए ? आखिर किसकी यह जिम्मेदारी है ? क्या मालिक बन बैठी अफरशाही ,सरकारी नौकर अपना काम पूरी ईमानदारी से करते है ? ऐसे कई सवाल है जिन के जबाब में केवल प्रशासन की मनमानी ,कर्तव्य में कोताही,गैर जरुरतमंदो के लिए काम करने के लिए जनता के पैसो से तख़वाँ पाना कहा जा सकता है। इस महामारी से संकट में सरकार ने इन जैसे परिवारों के लिए क्या किया है ?  सचमुच इन के लिए पांच किलो चावल और एक किलो दाल भी पहुंची है या नहीं ? और पहुंची है तो उसे पकाया कैसे ?  क्यू के इनके पास राशन कार्ड ही नहीं है तो उज्ज्वला की गैस इन्हे कौन दे ? चाहे बिलकुल कम मात्रा में क्यू न हो ऐसे परिवार सरकार की योजना में होते भ्रष्टाचार को उजागर कर ही देते है। जिससे प्रशासन का निर्लज्ज मुखौटा सामने आता है।

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