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देश का बिमा नियामक में बैठे है ,मतलबी,बेईमान / IRDA is prejudice institution
Paragraph
देश का बिमा नियामक में बैठे है ,मतलबी, बेईमान
बिमा योजनाए एक लूट की रचना है ,
फसल बिमा सच और झूठ
भारत देश की लगभग आधी आबादी आज किसान और खेतिहर मजदुर है। देश के हर प्रान्त में जमींन का मिज़ाज अलग अलग है। इस विविधता के कारण इतनी बड़ी आबादी के लिए अन्न और औषधि का निर्माण सुचारु ढंग से होता है। यहाँ की कपास से कपड़ा बनता है। कुल मिलाकर हमारे देश में अन्न का भंडार बहुत बड़ा और भरोसेमंद है। हालांकि खेती उत्पादों के रख रखाव ,भण्डारण की व्यवस्था आज भी बेहद कमजोर है। इसी वजह से हर साल लाखो टन अनाज ख़राब हो जाता है। तो दूसरी और बेमौसम बारिश ,अतिवर्षा ,सूखा इनकी वजह से किसानो की हालत खस्ता हो रही है। इससे उभरने के लिए हमारी सरकारे कई बेनतीजा कोशिशे करती रही है। ऐसे में पिछले पांच वर्षो में मोदी सरकारने किसानो को फसल बीमे की आदत डालने की कोशिश की है।इसके परिणाम दिखाई दे रहे है।फिर भी इस मामले में सरकार को जितना गंभीर होने की जरुरत है ,उतनी गंभीरता न होनेसे बिमा कम्पनिया किसानो को लूट रही है। और इस लूट में सरकार भी शामिल होने का शक यकींन में तब बदलता है। जब असल में किसान का नुकसान होने पर भी बिमा क्लेम नहीं हो रह है। इस वजह से किसानो में काफी नाराजी है. परिणाम स्वरूप इस वर्ष अकेले महाराष्ट्र में किसानो ने इस बिमा योजनसे मुँह फेर लिया है।
बिमा कम्पनिया किसानो को लूट रही है ,और सरकारे उसे नजरअंदाज कर रही है।
प्रधान मंत्री फसल बिमा यह नाम सीधे प्रधान मंत्री के पद से जुड़ा है। बावजूद इसके इसमें लूट की जा रही है। और इस लूट को आर आर डी ए नामक सरकारी संस्था के नाक के निचे अंजाम दिया जा रहा है। इस संस्था में अगर ईमानदार लोग बैठे है। तो वह किसान बिमा के कितने उपभोगताओ को लाभ दिया है। इस की जानकारी गांव की पंचायत के नोटिस बोर्ड पर सार्वजनिक करे ताकि हर गांव में पता चले की कितने किसानो को इस प्रधान मंत्री फसल बिमा का लाभ मिला है।यह जानकारी ग्रामीणों को मिले। इस योजना में लूट कैसे हो रही है इस की जानकारी साझा कर रहे है। इस योजना के तहत महाराष्ट्र में किसानो को हर साल अलग अलग फसल के लिए बिमा प्रीमियम राशि तय की जाती है। और किसानो से उसके दस प्रतिशत शुल्क वसूला जाता है। जो ४०० रूपये से लेकर १५०० तक होता है। और उसको जो रसीद मिलती है। उस पर किसान के दस प्रतिशत राज्य और केंद्र सरकार के आधे आधे मिलकर ९० प्रतिशत ऐसी ऑनलाइन रसीद दी जाती है। इसमें मेरे कुछ सवाल है। उदहारण के लिए , एक किसानो के एक फसल के लिए पांच हजार से लेकर पचास हजार प्रति एकड़ के हिसाब में नुकसान होता है। खास बात यह है के यह शतप्रतिशत नहीं होता। अतिवर्षा और सूखा इनमे होता है। पर वह भी साठ से सत्तर प्रतिशत होता है। ऐसे में अगर देश के नागरिक का केवल १२ रुपये में पुरे साल जान के जोखिम का जिम्मा बिमा कम्पनिया उठती है ,तो किसान के इस पांच से पचास हजार का जोखिम क्यों नहीं उठती ?
इसी को लेकर दूसरा सवाल है , एक से दो हजार में एक लाख रुपये तक के दोपहिया वाहनों का बिमा होता है। वह भी अनलिमिटेड लायब्लिटी का झूठा दावा करे के तो किसानो के एक फसल के बीमे के लिए सरकार क्यों आपने उपकार जताना चाहती है। क्यों के दस प्रतिशत का हिस्सा किसान दे रहा है। जो दोपहिया वाहनों के उपभोगता के इतना है। यह किसानो के साथ लूट की जा रही है। उनपर दिन दहाड़े डाका डाला जा रहा है। मेरे हिसाब से यह देश द्रोह है , डकैती है । और इसके लिए बिमा नियामक संस्था जिम्मेदार है।
आय आर डी ए की नाकामी का शिकार है ,बिमा उपभोगता
आई आर डी ए ( बीमा नियामक मंडल ) जिसे मैंने उपभोगता के लिए निति बनाते देखा नहीं है। कोई विदेशी कंपनी आकर हमारे नागरिको के लिए एक रूपया प्रतिमाह के हिसाब से सालाना १२ रुपयोंमें में २ लाख रुपयों का सालाना बिमा करवाती है,दूसरी ओर हमारी कम्पनिया ग्राहकों,याने उपभोग्ताओ को लूटने में जुटी है। मैं उदाहण के लिए बिमा योजना के दो भिन्न अंग आप को समझा रहा हु ,इस के बाद आप के मन में जो सवाल खड़े होंगे उसका जबाब कभी मौका मिले तो बिमा नियामक मंडल ,निगम से या अपनी चुनी हुयी सरकार से जरूर पूछियेगा।
हम लोग अपने वाहनों का बिमा करवाते है। जिसके लिए १५०० से लेकर दस हजार तक का प्रीमियम बिमा कंपनी को देते है। जिसके बदलेमे एक्सीडेंट होने पर अनलिमिटेड लायब्लिटी का वादा बिमा कंपनी करती है। पर यह वादा कभी पूरा नहीं करती या निभाती है। ज्यादा तर गाडी के एक्सीडेंट में दोपहिया है ,तो हेड लैम्प ,आगेका शोकब ,हैंडल इसका नुकसान देह देने के लिए आपका एक्सीडेंट हुवा है,बिमा कंपनी उस दिन गाडीकी कीमत का हिसाब लगाती है।जब के इसकी मरम्मत में जो पुर्जे लगाए जाते है वह सब बिलकुल नए खरीदकर लगाए जाते है. उसके तिस,चालीस प्रतिशत का ही हिसाब यह कम्पनिया उपभोगता को देती है। साथ ही हर एक्सीडेंट को मामूली बता कर अगले बड़े एक्सीडेंट में पूरा बेनिफिट नहीं मिलेगा यह गलत मार्केटिग कर उपभोगता /ग्राहक को क्लेम करने से दूर करती है। यह बिलकुल गलत है। चार पहिया वाहन है ,तो उसके एक्सीडेंट में सामनेका प्लास्टिक वाला शो बंपर, ,रेडियेटर,कंडेंसर , पहिये के एन्ड ,स्टेरिंग बॉक्स ,इंजिन फॉउंडेशन खास कर यह नुकसान होता है। इस सबमे खर्चा बहुत है। पर कंपनी के सर्वेयर बहुत सारी चीजे बिमा के तहत बदलकर नहीं मिलेगी जैसे प्लास्टिक का बंपर जो दस हजार से लेकर पच्चीस हजार तक आता है। पल्स्टिक का रिप्लेसमेंट नहीं होगा यह कहकर उसे टाल दिया जाता है। जब के अनलिमिटेड लायब्लिटी के नियम को सीधे हटा दिया जाता है. और बेवकूफी तर्क दिए जाते है आपका ज़ीरो डेप नहीं था। अगली बार वही करना।यह कहकर उपभोगता को लूटने का रास्ता प्रशस्त कर लिया जाता है। कई सारे लूट के बहाने और इस नुकसान के लिए सुनवाई के कोई रास्ते नहीं।
बिमा नियामक अगर ईमानदार रहे ,
तो किसानो के साथ अन्य उपभोगता भी खुश रहेंगे।
मेरे निरिक्षण अनुसार बिमा नियामक जैसी संस्थामे ग्राहक हित और अधिकारों को संरक्षण करनेवाले लोगो को नियुक्त करना चाहिए। यहाँ अगर कंपनियों के हितो की रक्षा करनेवाले बैठेंगे तब तक देश के किसानो की और बिमा ग्राहक ,उपभोगताओ की लूट होती रहेगी। इस बिमा नियामक में आज तक बैठे सभी की निष्पक्ष जाँच सी बी आय जाँच होनी चाहिए। साथ ही इसी संस्था के द्वारा बिमा सम्बंधित शिकायते और न्याय निस्तरण की व्यवस्था निर्माण करनी होगी । आज के लिए इतना काफी है। आप की प्रतिक्रियाये मेरे गलतियों को सुधारने और मेरे ज्ञान वर्धन में काम आएगी।
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माधव ओझा
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— Madhav ojha (@OjhaMadhav) March 9, 2023
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