जो हम खुद स्वीकार सकते है,
वही पीड़ितों के मदत के लिए दीजिये।
आपत्ती में सहायता का समय निर्धारित हो सकता है ?
कुदरती हाहाकार की बहुतसारी घटनाये आये दिन घटती रहती है। कई बार यह जानलेवा होती है तो कई बार यह घटनांए हमारे जीवन के संसाधनों को तबाह कर देती है। ऐसे में आंधी ,तूफान ,बाढ़ ,सूखा यह सबकुछ इसी व्याख्यामें सामनेवाला है।
इन दिनों में महाराष्ट्र के साथ अन्य केरल,मध्यप्रदेश ,कर्नाटक का बड़ा हिंसा बाढ़ से प्रभावित है। फिर भी महाराष्ट्र की बात करे तो इसके करीब सत्ताईस जिले आज पिने के पानी के लिए जूझ रहे है। बाकि जिल्हो में बाढ़ का प्रकोप है। खासकर सांगली,सतारा ,कोल्हापुर यह बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुवे जिले है। आठ से दस दिनों की बाढ़ का पानी ख़तम हो रहा है नदिया पुनः अपने रूप में समां रही है।
यहाँ के कुछ गावोंमें जीवन की शुरवात नए सिरेसे करनेका समय शुरू हुवा है। और राज्य के सभी गावो शहरोसे हर कोई अपनी तरफ से पीड़ितों को सहयतामे लगा रहा है। यहाँ की जरुरत क्या है ? उसपर उपाय कैसे करे ? हम जो कर रहे है क्या यह सब काफी है ? क्या हम सचमुच जरुरतमंदो तक पहुचनेवाले है या नहीं ? इन सवालो को जबाब ढूंढे बिना सहायता केलिय निकल पड़े है। जबकि वास्तव बहुत अलग है। जिनके लिए यह सब किया जा रहा है ,उन्हीका आज कोई ठिकाना नहीं है। उन्हें ही पता नहीं है के आज की तारीख में उनकी प्राथमिकता और तुरंत जरूरत क्या हैं। क्यों के जो प्रभावित है वह सब सोचने की शक्ति खो चुके है। जिन्हो ने प्रशासन की बात नहीं मानी वह आज मुख्यधारासे दूर है। जिन्हे प्रशासनने सहारा दिया है वह सब रेस्क्यू कैंपोमें सकुशल है। ऐसे में हम किसे मदत पहुंचा रहे है ? इसका जबाब ढूंढ़ना होगा।
जहाँतक मेरी सोच जा रही है ,इन पीड़ितों के लिए संघर्ष का समय तब शुरू होगा जब वे अपने ठिकानो पर लौटेंगे। उस समय उन्हें मदत की जरुरत होगी। और यह स्थिति अब से करीब एक महीने बाद आनेवाली है। और तब उनकी तरफ सहायता का कोई हाथ नहीं पहुचनेवाला है।
आज जिस जोश के साथ हम मदत देनेके लिए जुटे है ,इसमें पुराने कपडे से लेकर टूथ पेस्ट तक की चीजे है। और यह सब इन्ही दिनों में ख़त्म होनेवाली है। जबकि पीड़ित परिवार जब अपने घर लौटेंगे तक शायद इससे ज्यादा की जरुरत उन्हें पड़नेवाली है। उस दिन के लिए हमें तैयार रहना होगा।
मेरी समझ से बाहर की एक बात है ,हमें मदत करनी है तो हम अपने घर का काम में नहीं आ रहा सामान क्यों देते है ? पुरानी चीजे क्यों देते है ? हम यह क्यों सोच लेते है के कुछ कम देते है तो हमारा नाम ख़राब हो जायेगा। इसी के चलते हम बेहद पुराने कपडे इस मदत के लिए बने मसीहाओ को देते है। जरुरी तो नहीं के दस पुराने कपडे रेस्क्यू कैम्प में भेज दो। एक नया भी देते है तो कमसे कम किसीके काम आ जाय।
चलो ठीक है हर के का आपने तरीका है। हर कोई अपने ढंग से सोचता है। मैं यह सोचता हु के किसीने दी हुयी चीज मुझे लेने में ख़ुशी मिलेगी वही चीज मै पीड़ितों को क्यों न दू ?
जरुरत के समय जो चीज हम खुद स्वीकार सकते है वही चीज पीड़ितों के मदत के लिए दीजिये।
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Whatever we can accept ourselves,
give the same thing for the help of the victims.
Can object time be set to help?
Many incidents of natural outbursts keep happening on the coming days. Sometimes it is fatal and sometimes it destroys the resources of our life. In such a situation, a storm, a storm, a flood, a drought are all present in this interpretation.
These days, along with Maharashtra, major violence of Kerala, Madhya Pradesh, Karnataka is affected by floods. Nevertheless, if we talk about Maharashtra, twenty-seven districts close to it are struggling for drinking water today. The rest of the district is flooded. Especially Sangli, Satara, Kolhapur, it is a badly hit district. Eight to ten days of flood water is running out, Nadia is regaining her form.
In some of the villages here, the time has begun to start life anew. And all the villages of the state are helping the victims on their behalf. What is needed here? How to remedy it? Is this all we are doing enough? Are we really going to reach the needy or not? These questions have come out without help to find answers. While very different indeed. Those for whom all this is being done, they have no place today. They do not know what their priority and immediate needs are today. Because all those who are affected have lost the power to think. Those who did not listen to the administration are far from mainstream. All those who have supported the administration are safe in rescue camp. In such a situation, who are we helping? This has to be found.
As far as my thinking goes, the time of struggle for these victims will start when they return to their hideouts. They will need help at that time. And this situation is going to come about a month from now. And then no hand of help is reaching them.
Today the enthusiasm with which we are engaged to help, it has things ranging from old clothes to tooth paste. And it is going to end in these days. While the victim families will probably need more by the time they return home. We have to be ready for that day.
There is one thing beyond my understanding, we have to help, so why do we give stuff not coming in our home work? Why do you give old things? Why do we think that if we give anything less then our name will be spoiled. For this reason, we give very old clothes to the messiahs made for this help. It is not necessary to send ten old clothes to the rescue camp. If you give a new one, at least someone’s work will come.
Okay, everyone has their way. Everyone thinks in their own way. I think that I will be happy to take something given to me, why should I not give the same thing to the victims?
Whatever we can accept ourselves in times of need, give the same thing for the help of the victims.
bahut badhiya
आजकाल लोग मदत करनेसे ज्यादा दिखावा करने में जुटे है
सही कहाँ